भारतीय ज्योतिष में कर्म के साथ-साथ भाग्य को भी एक सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है
भारतीय ज्योतिष में कर्म के साथ-साथ भाग्य को भी एक सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है।
क्योंकि बिना भाग्य का मानव जीवन अधूरा जैसा दिखाई देता है। व्यक्ति कर्म करे पर उसका पूर्ण फल न मिले यह भाग्य का साथ न देना भी माना जाता है। मानव जीवन में हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह हर प्रकार के भौतिक सुख सुविधाएँ प्राप्त करें। जब व्यक्ति की मनवांछित भौतिक सुख सुविधाएं पूर्ण होने लगती है तो इसी स्थिति में ज्योतिषशास्त्र की भाषा में भाग्योदय कहते हैं।प्राचीन काल से ही सदैव जातक यानि व्यक्ति की अभिलाषाएं असीमित रही है। व्यक्ति अपने जीवन काल में वह सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है जिसके लिए वह व्यक्ति योग्य ही न हो या जो उसकी क्षमता से बहुत ही दूर हो। अदाहरण दे कर बात करें तो जैसे एक भिखारी अपनी तुलना किसी नगर सेठ से करना चाहे तो ऐसा कभी नहीं होगा| न ही ऐसी किसी स्थिति को भाग्योदय से जोड़ना ही चाहिए। जन्मकुंडली व्यक्ति के जीवन का पूर्ण सत्य खाका माना जाता है। जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति अच्छी होना परम आवश्यक है भाग्य से संबंधित ग्रहों का शुभ होना तथा उनकी दशा-महादशा का सही समय पर व्यक्ति के जीवन में आना भी उतना ही आवश्यक होता है अन्यथा कुंडली अच्छी होने पर भी यदि कार्य करने की उम्र शत्रु या नीच ग्रहों की महादशा में ही बीत रही हो तो लाख परिश्रम के बाद भी उसका फल समय बीतने के बाद ही मिलेगा । ज्योतिषशास्त्र के द्वारा निर्मित जन्मकुंडली व्यक्ति के भूत-भविष्य-वर्तमान को ले कर वास्तविकता को प्रकट करता है । बात करते है जन्मकुंडली के अनुसार भाग्योदय की । जन्मकुंडली में भाग्य का स्थान नवम भाव को माना गया है। इस भाव में जिस राशि का आधिपत्य होता है, उसके अनुसार भाग्योदय का वर्ष तय किया जाता है व नवम और नवमेश की शुभाशुभ स्थिति और से भाग्योदय का निर्माण होता है तथा जन्मकुंडली के नवम भाव में स्थित राशि व ग्रह के अनुपात में व्यक्ति का भाग्योदय होता है। परंतु साथ ही व्यक्ति की चंद्र कुंडली का भी नवम भाव भी देखना जरूरी होता है। किसी भी ज्योतिषीय से भाग्योदय की जानकारी लेने से पूर्व व्यक्ति को अपनी योग्यताओं व अपनी क्षमताओं पर विचार के लेना चाहिए की क्या में जो सोच रहा हूँ वह मेरे लिए फल दायी है या मेरी योग्यता अनुसार मुझे प्राप्त करना चाहिए व्यक्ति के विचार उसके क्षमता से प्रभावित होनी चाहिए| यदि आप अपनी वास्तविकता को नहीं समझेंगे तो जीवन भर असंतुष्ट ही बने रहेंगे| आपको हमेशा यह महसूस होगा कि आप दुर्भाग्य का ही सामना कर रहे हैं| इसलिए अपने भाग्य को प्रबल व फलदायी बनाने के लिए व्यक्ति को अपनी योग्यता व क्षमताओं के अनुसार ही सोचना चाहिए। जन्म कुंडली के नवम भाव के राशि स्वामी से व्यक्ति का विशेष रूप से भाग्योदय होता जो इस प्रकार है -सूर्य 22वें वर्ष में, चंद्र 24वें वर्ष में, मंगल 28वें वर्ष, बुध 32वें वर्ष में, गुरु 16वें वर्ष में, शुक्र 25वें वर्ष या विवाह के बाद, शनि 36वें वर्ष में यदि नवें भाव पर राहु-केतु का प्रभाव हो तो क्रमश: 42वें व 44वें वर्ष में भाग्योदय होता है। ग्रहानुसार भाग्योदय के वर्ष जानकर यदि उन वर्षों में विशेष कार्यों की शुरुआत की जाए, तो सफलता जरूर मिलेगी। इसके साथ ही नवम भाव के स्वामी ग्रहों को शुभ व बलि रखने के उपाय करना चाहिए।

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