जानिए ज्योतिषशास्त्र व हिन्दू धर्म के अनुसार अधिमास में क्या करें व क्या न करें




 जानिए ज्योतिषशास्त्र व हिन्दू धर्म के अनुसार अधिमास में क्या करें व क्या न करें

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार में हिन्दू मास को श्रेष्ठ उत्तम माना गया है। द्वादश मासों के कम-अधिक होने की व्यवस्था चंद्र मास में ही होती है, लेकिन यह निर्णय सूर्य संक्रांति से होता है। सामान्यतः प्रत्येक माह में संक्रांति अर्थात सूर्य का राशि परिवर्तन एक बार अवश्य रहने से चंद्र मास की प्रक्रिया सहज चलती रहती है। जब मास में 2 सौर संक्रांतियों का समावेश हो जाए तो क्षय मास आता है एवं जिस माह में सूर्य संक्रांति का अभाव हो, उसे 'अधिकमास' कहते हैं। सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चान्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है।  

वर्ष की गणना के अनुसार 32 महीने 16 दिवस 1 घंटा 36 मिनट के अंतर से अधिकमास का चक्र प्रारंभ होता है। सौर वर्ष 365 दिन 6 घंटे 11 सेकंड के मान का बना है जबकि चंद्र वर्ष 354 दिन 9 घंटे का होता है। सौर वर्ष और चंद्र वर्ष के मध्य होने वाले फर्क को अधिकमास द्वारा बांटा जाता है। अधिकमास भगवान को प्रिय होने के कारण उन्होंने इसे अपना नाम 'पुरुषोत्तम' दिया। इस कारण से इसे 'पुरुषोत्तम मास' भी कहते हैं।


जनमानस में इसे अधिकमास, मलमास, पुरुषोत्तम मास के नाम से पुकारा जाता है। इस अवधि में शुभ काम में कर्म त्याज्य रहेंगे। दैविक कर्मों को सांसारिक फल की प्राप्ति के निमित्त प्रारंभ किया जाए, वे सभी कर्म वर्जित हैं, जैसे तिलक, विवाह, मुंडन, गृह आरंभ, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत या उपनयन संस्कार, निजी उपयोग के लिए भूमि, वाहन, आभूषण आदि का क्रय करना, संन्यास अथवा शिष्य दीक्षा लेना, नववधू का प्रवेश, देवी-देवता की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ, वृहद अनुष्ठान का शुभारंभ, अष्टाकादि श्राद्ध, कुआं, बोरिंग, तालाब का खनन आदि का त्याग करना चाहिए। इसमें रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्यक्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज जलवा आदि, गर्भाधान, पुंसवन, सीमांत जैसे संस्कार किए जा सकते हैं। यात्रा करना, साझेदारी के कार्य करना, मुकदमा लगाना, बीज बोना, वृक्ष लगाना, दान देना, सार्वजनिक हित के कार्य, सेवा कार्य करने में किसी प्रकार का दोष नहीं है। इस माह में व्रत, दान, जप करने का अव्यय फल प्राप्त होता है।

व्यक्ति यदि गेहूं, चावल, मूंग, जौ, मटर, तिल, ककड़ी, केला, आम, घी, सौंठ, इमली, सेंधा नमक, आंवले का भोजन करे तो उसे जीवन में कम शारीरिक कष्ट होता है। उक्त पदार्थ या उससे बने पदार्थ उसके जीवन में सात्विकता की वृद्धि करते हैं। उड़द, लहसुन, प्याज, राई, मूली, गाजर, मसूर की दाल, बैंगन, फूलगोभी, पत्तागोभी, शहद, मांस, मदिरा, धूम्रपान, मादक द्रव्य आदि का सेवन करने से तमोगुण की वृद्धि का असर जीवनपर्यंत रहता है। इस माह में जितना हो सके उतना संयम अर्थात ब्रह्मचर्य का पालन, फलों का भक्षण, शुद्धता, पवित्रता, ईश्वर आराधना, एकासना, देवदर्शन, तीर्थयात्रा आदि अवश्य करना चाहिए। सभी नियम अपने सामर्थ्य अनुसार करना चाहिए। यदि पूरे मास यह नहीं हो सके तो एक पक्ष में अवश्य करना चाहिए। यदि उसमें भी असमर्थ हों तो चतुर्थी, अष्टमी, एकादशी, प्रदोष, पूर्णिमा, अमावस्या को अवश्य देव कर्म करें।


इन तिथियों पर भी न कर पाएं तो एकादशी, पूर्णिमा को परिवार सहित कोई भी शुभ काम अवश्य करें। अधिकमास की कथा, माहात्म्य का भी पाठ करने से पुण्यों का संचय होता है। अधिक जानकारी के लिए आप विश्व विख्यात ज्योतिषाचार्य इन्दु प्रकाश जी से सम्पर्क कर सकते हैं ।


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